| | | आज रात कुछ थमी-थमी सी
स्वप्न न जानें कैसे भटके नयनों की कोरो से छलके
दूर स्वान की स्वर भेदी से ,हर आशाये डरी-डरी सी
दर्दो का वह उडनखटोला ले कर मेरे मन को डोला
स्याह रात की जल-धरा से ,मेरी गागर भरी-भरी सी
शंकाओ का कसता धेरा कैसा होगा मेरा सवेरा
मंजिल के सिरहाने पर ये ,राहें कैसी बटी-बटी सी
विक्रम | | | | | |
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